Thursday, 18 December 2014

Hindi poem on Development of Human race

 मैं हूँ मानव 


कल्पना की सुन्दर उडान हूँ मैं 
भावनाओं का प्रचंड तूफान हूँ मैं 
प्राणियों में सबसे महान हूँ मैं 
पर ताकत से अपनी अनजान हूँ मैं १ 

विचारों का बहता दरिया भी मैं हूँ 
उस दरिया की नैया का खिवैया भी मैं हूँ 
मैं ही बनाता हूँ दुनिया के नियम 
और नियमों में जकडा इंसान भी मैं हूँ २ 

मैंने हिमालय का गरूर भी तोडा है 
मैंने ही धरती को चन्द्रमा से जोड़ा है 
मैंने ही तोडा है महासागरों का गौरव 
और भूमि का गर्भ भी मैंने टटोला है ३ 

अभी इस सूखे की मार से लड़ना है 
अभी इस सुनामी की चाल को पकड़ना है 
अभी तो मिटाना है धरती का यह कम्पन 
अभी इन घटाओं की रफ़्तार को जकड़ना है ४ 

खोजूंगा कुछ मोती मैं विज्ञान की झोली से 
और कुछ मदद मुझे संयुक्त राष्ट्र  की होगी 
बनाऊंगा इस जहाँ को मैं और भी उम्दा 
बस एकता ही अब मेरी पहचान होगी ,
बस एकता ही अब मेरी पहचान होगी ५ 

- महेश कुमार बैरवा 


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