मैं हूँ मानव
कल्पना की सुन्दर उडान हूँ मैं
भावनाओं का प्रचंड तूफान हूँ मैं
प्राणियों में सबसे महान हूँ मैं
पर ताकत से अपनी अनजान हूँ मैं १
विचारों का बहता दरिया भी मैं हूँ
उस दरिया की नैया का खिवैया भी मैं हूँ
मैं ही बनाता हूँ दुनिया के नियम
और नियमों में जकडा इंसान भी मैं हूँ २
मैंने हिमालय का गरूर भी तोडा है
मैंने ही धरती को चन्द्रमा से जोड़ा है
मैंने ही तोडा है महासागरों का गौरव
और भूमि का गर्भ भी मैंने टटोला है ३
अभी इस सूखे की मार से लड़ना है
अभी इस सुनामी की चाल को पकड़ना है
अभी तो मिटाना है धरती का यह कम्पन
अभी इन घटाओं की रफ़्तार को जकड़ना है ४
खोजूंगा कुछ मोती मैं विज्ञान की झोली से
और कुछ मदद मुझे संयुक्त राष्ट्र की होगी
बनाऊंगा इस जहाँ को मैं और भी उम्दा
बस एकता ही अब मेरी पहचान होगी ,
बस एकता ही अब मेरी पहचान होगी ५
What a amazing poem
ReplyDeleteRight
DeleteMai hu manav aur mai hi sab hu...iss Sab ne sab khtam kar diya hai
ReplyDeleteamazing
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