नजरिया
मशीनी है दुनिया तनाव बड़ा है
मानव का मानव से टकराव बड़ा है
सूखा है करुणा का लहराता सागर
इसीलिए खुशियों का यहाँ भाव बड़ा है१
अच्छाई यहीं है बुराई यहीं है
नफरत से पनपी तन्हाई यहीं है
यहीं है सफलता का लहराता परचम
और फूटी हुई किस्मत दुहाई यहीं है २
जीत हो मेरी और विरोधी की हार हो
सबसे पहले यारों इस सोच में सुधार हो
मैं भी रहूँ फलता घर उसके बहार हो
कुछ ऐसे विचारों का हर दिल में विस्तार हो३
जरूरत हो जितनी धन उतना करीब हो
न कोई धनी और न कोई गरीब हो
संतोष का सुख हर घर को नसीब हो
हो दिलों में मोहब्बत कुछ ऐसी तरकीब हो ४
- महेश कुमार बैरवा
Beautifully penned 👌👏
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